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Sunday, July 17, 2016

मानवता

मैं नहीं हूँ पंछी
ना हूँ पशु प्राणी
मैं तो हूँ एक मानव
धरती माँ का लाल

करना सबकी सेवा
वृक्ष हो या पौधा
रखना सबका ध्यान
यह है मानवता का ज्ञान

जब भूख से कोई रोए
न हमसे भोजन होए
जितना संभव करो भला
मानवता की है यही कला

सबकी पीड़ा समझे
प्रेम की भाषा छलके
सबको दे सम्मान
न करे कभी अपमान

ह्रदय में जिसके करूणा
न किसी को हानि करना
निस्वार्थी हो के जीना
मानवता में ही रहना

हिंसा कभी न करना
ईर्षा से दूर रहना
धरती माँ के लाल
मानवता को सम्भाल

Friday, June 10, 2016

मेरे प्रयास की कोई सीमा नहीं

मेरे प्रयास की कोई सीमा नहीं
फल मिलने की चिंता नहीं
कर्म करता रहूँगा मैं
असफलता से नहीं डरूंगा मैं

देखता हूँ की कितनी बार
पटकेगा तू मुझको हार
जीत के तुझको दिखा दूंगा
चाहे सारा जीवन बिता दूंगा

थकूंगा नहीं मैं तुझसे हार
चाहे हारू सौ सौ बार
तू भी सोचेगा एक बार
किस से उलझा हूँ मैं यार

मेरे जीवन के सब लक्ष्य
कर दूंगा तुझको प्रतक्ष्य
कोई व्यंग करे चाहे मारे ताना 
बिना जीत के घर नहीं जाना

जब हार मुझसे टकराएगा
मैं तो गिरूंगा पर वह भी लड़खड़ायेगा
उठके जब मैं आऊंगा
तो हार तुझे दिखलाऊँगा

मेरे प्रयास की कोई सीमा नहीं
हार जीत की चिंता नहीं