Saturday, September 17, 2011

मेरा क्रोध

मेरे क्रोध का कारण है, मेरा अहंकार |
मै ना किसी कि बात सुनु, अच्छी हो या बेकार ||

क्यों मै उसकी बात मानु, क्यों करु सम्मान |
मै जो कहुँ वही सही है, केहता मेरा अभिमान ||

मेरे क्रोध के कारण से, मिला मुझे अपमान |
कभी ना क्रोध से लाभ मिला, हरदम हुआ नुक्सान ||

इस क्रोध ने छीन लिए, मेरे सारे मित्र |
अब मित्र मुझे केहते है, मै हुँ बड़ा विचित्र ||

कोई ना मेरे समीप आए, सारे मुझसे राह बचाए |
कर दुँगा मै दिन को नष्ट, ये केहके सब जान छुड़ाए ||

अब मै अपने क्रोध से, हो गया हुँ लाचार |
लोग मुझे केहते है, कष्ट देना ही लोगो को, है मेरा विचार ||

किसी प्रकार से त्याग दुँ जो, मै अपने क्रोध का अंगार |
लोग मुझे क्षमा करे, मै सुधारु अपना विचार ||

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