Tuesday, January 1, 2013

साधू


जीने का मुझको शौक नहीं था ,
पर मरने का खौफ बहुत था |
जीवन जीये जा रहा था ,
जीने का उद्देश नहीं कुछ था  |
भगवन तुझे मैं पूज रहा था ,
पर भक्ति का मुझको ज्ञान नहीं था  |
जितना पाते जा रहा था ,
उतना और मांग रहा था  |
इच्छा को मन में स्थान दिया था ,
और मन ने मुझपे राज किया था |
बदला हूँ मैं राम जाप से ,
हरे कृष्णा मैं गाता हूँ  |
खोई थी मेरी करुणा ईर्षा के प्रभाव से,
करुणा मेरी जागी करुणानिधी के ध्यान से |
सुन्दाता की पूजा करता बाकी का अपमान ,
जली है जब से ज्ञान की ज्योती लगते सभी समान |
स्वार्थ लाभ बस इतनी थी मुझको चिंता  ,
कथा पढ़ी एक दानी की तो त्यागी मैंने निंदा  |
बड़ा कठोर स्वाभाव था मेरा करना क्रोध देना दोष ,
साथ मिला जब संत पुरुष का मैं हूँ दोषी आया होश  |
बदला हूँ मैं राम जाप से,
बस हरे कृष्णा मैं गाता हूँ |