Saturday, September 6, 2014

स्वाधीनता दिवस कि कविता

लक्ष्य थे उनके सब से श्रेष्ठ
केवल स्वतंत्रता केवल देश ।
और न कोई थी उनकी इच्छा
एकता का दिया सन्देश ।

वंदे मातरम, वंदे मातरम ॥

देश ही देश बसा था मन मे
पुरब पस्चिम उत्तर दक्षिण ।
एक से एक थे वीर बहादुर
प्राण दे गये देश के हेतु  ।

वंदे मातरम, वंदे मातरम ॥

दर्पण जैसे थे उन के मन
हृदय से करते थे देश कि चिंतन ।
अपने सुख को त्याग दिया था
बलिदानो से उनका जीवन भरा था ।

वंदे मातरम, वंदे मातरम ॥

उत्तम देश कि थी उनकी इच्छा
स्वतंत्र विचार सबकी सुरक्षा ।
शत्रु को भी नही दी कभी हानी
विश्व को दिया अहिंसा कि वाणी ।

वंदे मातरम, वंदे मातरम ॥

कोटी प्रणाम करु प्रशंसा
स्वतंत्रता के हर एक सैनिक को ।
आभार प्रगट मै करता हूँ
हर देश भक्त से प्रेम करता हूँ ।

वंदे मातरम, वंदे मातरम ॥