जीने
का मुझको शौक नहीं था ,
पर
मरने का खौफ बहुत था |
जीवन
जीये जा रहा था ,
जीने
का उद्देश नहीं कुछ था |
भगवन
तुझे मैं पूज रहा था ,
पर
भक्ति का मुझको ज्ञान नहीं था |
जितना
पाते जा रहा था ,
उतना
और मांग रहा था |
इच्छा
को मन में स्थान दिया था ,
और
मन ने मुझपे राज किया था |
बदला
हूँ मैं राम जाप से ,
हरे
कृष्णा मैं गाता हूँ |
खोई
थी मेरी करुणा ईर्षा के प्रभाव से,
करुणा
मेरी जागी करुणानिधी के ध्यान से |
सुन्दाता
की पूजा करता बाकी का अपमान ,
जली
है जब से ज्ञान की ज्योती लगते सभी समान |
स्वार्थ
लाभ बस इतनी थी मुझको चिंता ,
कथा
पढ़ी एक दानी की तो त्यागी मैंने निंदा |
बड़ा
कठोर स्वाभाव था मेरा करना क्रोध देना दोष ,
साथ
मिला जब संत पुरुष का मैं हूँ दोषी आया होश |
बदला
हूँ मैं राम जाप से,
बस
हरे कृष्णा मैं गाता हूँ |
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