Sunday, September 1, 2013

अजनबी का जीवन जीता हूँ



अजनबी का जीवन जीता हूँ
कवी में खुद को कहता हूँ
हर दिन मैं सोच में रेहता हूँ
कुछ समझ में आए तो लिखता हूँ

हर मानव से कुछ सीखता हूँ
बात सभी की सुनता हूँ
पर अपने ही मन की करता हूँ
कविता लिखने को उत्सुक रेहता हूँ

कडवी बात न करता हूँ
कोई मजाक करे तो सेहता हूँ
सादा जीवन ही जीता हूँ
हर बात पे कविता लिखता हूँ

मैं सभी से घुल मिल रेहता हूँ
पर मोह किसी से न करता हूँ
मोह हुआ तो मैं रोता हूँ
बिछड़ने से मैं डरता हूँ

ध्यान प्रभु का मैं करता हूँ
श्लोक भी कभी कभी पढता हूँ
परिणाम से ना कभी डरता हूँ
कोई गलत काम नहीं करता हूँ

कोई पढ़े न पढ़े मैं लिखता हूँ
कविता लिख कर खुश होता हूँ

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