अजनबी
का जीवन जीता हूँ
कवी
में खुद को कहता हूँ
हर
दिन मैं सोच में रेहता हूँ
कुछ
समझ में आए तो लिखता हूँ
हर
मानव से कुछ सीखता हूँ
बात
सभी की सुनता हूँ
पर
अपने ही मन की करता हूँ
कविता
लिखने को उत्सुक रेहता हूँ
कडवी
बात न करता हूँ
कोई
मजाक करे तो सेहता हूँ
सादा
जीवन ही जीता हूँ
हर
बात पे कविता लिखता हूँ
मैं
सभी से घुल मिल रेहता हूँ
पर
मोह किसी से न करता हूँ
मोह
हुआ तो मैं रोता हूँ
बिछड़ने
से मैं डरता हूँ
ध्यान
प्रभु का मैं करता हूँ
श्लोक
भी कभी कभी पढता हूँ
परिणाम
से ना कभी डरता हूँ
कोई
गलत काम नहीं करता हूँ
कोई
पढ़े न पढ़े मैं लिखता हूँ
कविता
लिख कर खुश होता हूँ
No comments:
Post a Comment