मैं
ने जो खुद को समझा ज्ञानी
यही
मेरी नादानी थी |
किया
काम जो मैं मनमानी
उस
में मेरी हानि थी |
सरलता
मेरे रास न आयी,
कठिनता
अपनाया मैं |
सुख
चैन मेरे पास से गुजरी
दुःख
को गले लगाया मैं |
दिन
और रात को एक बनाया,
इच्छा
मन में छाया जो |
इस
चक्कर में सुख मुरझाया,
भले
सफलता आया हो |
रहेंगे
मेरे साथ जीवन में
जिस
किसी को समझा मैं |
निकल
गए वह साथ छोड़ के
जब
नजर उन्हें बोझ आया मैं |
बड़ा
समझकर जिसे मित्र बनाया,
काम
मेरे वह कभी न आया |
सरल
जनो को मुर्ख समझा ,
फिर
भी दिया उन्होंने मान का दर्जा |
अहंकार
से टूट गया मैं ,
इस
से बस दुःख प्राप्त हुआ है |
अपने
दुःख का कारण मैं,
पर
दुःख ने ही घमंड से मुक्त किया है |
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