Monday, March 12, 2012

प्रसन्नचित्त

रुक रुक के चलती है ये मेरी ज़िन्दगी,
पर समय है की रुकता नहीं,एक पल के लिए भी |
चाहता तो हूँ मैं करना बहुत कुछ,
पर ये चंचल मन मेरा करने नहीं देता कुछ भी,चार पल से ज्यादा ।
जिस राह पे चलते हुवे लोग थकते ही नहीं,
उस राह पर मुझे चलना लगता है कठिन ।
व्यस्त है देखो दुनिया सारी संसार की बातो में,
मुझको न है भविष्य की चिंता,न उलझा कभी मैं इन बातो में ।
न रात दिखे,न दिन को गिने ये दुनिया इच्छापूर्ति के कारण से,
मैं अपनी गति से चलूँ ,नहीं रूचि मुझे इस खेल में अगाडी पछाड़ी के ।
न जानू मैं की कौन सही,दुनिया है सही या मैं हूँ सही
निष्ठां है मुझे भगवन में,इंसान मुझे न समझ सके |

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