Thursday, January 1, 2015

गणतंत्र दिवस की कविता

छब्बीस जनवरी का वह दिन था विशेष
स्वतंत्र दिवस के तीन वर्ष पश्चात
मिला अपने देश को एकता का सन्देश
गाये राष्ट्रीय गीत लेके तिरंगा अपने हाथ 

हो जाए भारत अपना सबसे श्रेष्ठ
हर क्षेत्र में श्रम, धन, खेल, ज्ञान और विज्ञानं
संस्कृति और सभ्यता में ना हम से कोई श्रेष्ठ
यही तो है अपने देश की पहचान

विविधता में एकता है सबको सिखाता
लोकतंत्र ही है इस देश की भाषा
हर कोई विश्व में है भारत देखना चाहता
सीखना चाहता है अहिंसा की भाषा

जय जवान जय किसान में है देश को विश्वास
इसलिए तो बचपन से गाया हमने ये नारा
इस नारे से होता है देश भक्ति का आभास
गणतंत्र दिवस को पाठशाला, गलियों में तिरंगा लगे प्यारा

हर मनुष्य को ज्ञान मिले हर बालक जाये पाठशाला
प्रगति इतना देश करे यही है मेरी प्रार्थना
विश्व कहे ये देश तुम्हारा है सबसे अधिक निराला
अतिथि देव भव  का गाते है हम गाना

सज्ज हो रहे बच्चे एक महीना पहले से
करने कार्यक्रम पाठशाला में गणतंत्र दिवस के अवसर पे 
देश भक्ति जहाँ होती है लोगो को बचपन से
वन्दे मातरम वन्दे मातरम होटों पे

बजता है हर गलियों में देश भक्ति संगीत
कोई स्वयं गाता है कोई सुनता है लेके यन्त्र आधुनिक   
जोश जगाता है गणतंत्र दिवस पे देश भक्ति गीत
देखो देश कितना बढ़ रहा निर्माण कर रहा तकनीक

न भूले कोई एक क्षण भी गणतंत्र दिवस का त्यौहार
इस प्रकार मनाये युवा बच्चे और वृद्ध के साथ
हे मेरी भारत माता तुझसे करते है हम प्यार 
सदैव बनाके रखना हम पे आशीर्वाद का हाथ

ऊँचे से ऊँचा तिरंगा लहराएंगे हर पथ पर
अपने देश की शान बढ़ाए उत्तर से दक्षिण तक
सज्ज रहे देश के लिए हर क्षण निरंतर
गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाए हर देश भक्त तक 

Saturday, December 6, 2014

मैं हूँ शाकाहारी

मॉ धरती का पुत्र हूँ
नमन किसान को करता ।
भोजन सरल मैं करता हूँ
शाकाहारी स्वयम को केह्ता हूँ ।

दूध दही भी पीता हूँ
गाय को मय्या केह्ता हूँ ।
स्वास्थ भी बढिया रेह्ता है
हर जीव पे मुझको करुणा है ।

है इतना सब कुछ खाने को
सो भय नही देता मैं पशुओ को । 
पशुए भय से कॉपे जब
मेरे हृदय मैं चिंता होती तब ।

ठीक नही है पशु का वध
विवश पशु न बोले एक शब्द ।
विविध सब्जिया विविध स्वाद
स्वास्थ सुधारे , किसान का प्रयास ।

जैसा चाहे वैसा उगाए 
बीज बोए खेत बाग लगाए । 
सारे जीव का प्राण बचाए
हिंसा से ना भूक मिटाए । 

दया बढाए क्रोध घटाए
हर प्राणी से प्रेम बढाए ।
हरयाली से देश सजाए 
मैं हूँ शाकाहरी, गर्व से गाए ।

Friday, November 7, 2014

The cool guy

Don't involve me in arguments
either you are right or I am right
I don't want to prove anything
I don't want to fight
I am cool guy, deep inside from heart

Don't provoke my anger,
I completely dislike
I avoid the company of people,
those who speak harsh or never speak polite

I love innocence, innocent people are divine
There is no use of that cleverness,
that is used to harm somebody's life.

God love the person who is honest from deep inside
Not harming to others, but fulfilling one's desire
Also helping to others in need whenever required

I am the poet of soothing heart or simply call me 'Vikas'
I love to write thoughts,
read it only if you like.

Angry words spoken to me, I never like to memorize
So I do not carry hatred and I do not supply worries
Because I am cool, I am cool guy

Wednesday, October 1, 2014

Appreciate generously

Appreciating others is not simple task
It requires courage and honesty in thought
Go ahead and appreciate, no need to ask
Let's fill happiness in everyone's life's pot

Overcome jealousy with mercy in heart
Let's pray together for success of all
Praising honestly is fraternity's art
So I love to say thanking you all

Ability of greatness grows even without appreciation
So why we are miser in saying little thought
Selfishness and envy for others refuse to pay attention
Whole-hearted person always appreciate a lot

Speak whatever in brain, not whatever in mind
What is the benefit in praising, this thought pulls back
But I am generous in thought and I want to be kind
This is way of happiness preventing all envious attack

It is the gift which is free of cost
But has to spend truth by generous in thought
Those who can do this make happy others without any cost
Emotions of envy will be destroyed in a lot

Saturday, September 6, 2014

स्वाधीनता दिवस कि कविता

लक्ष्य थे उनके सब से श्रेष्ठ
केवल स्वतंत्रता केवल देश ।
और न कोई थी उनकी इच्छा
एकता का दिया सन्देश ।

वंदे मातरम, वंदे मातरम ॥

देश ही देश बसा था मन मे
पुरब पस्चिम उत्तर दक्षिण ।
एक से एक थे वीर बहादुर
प्राण दे गये देश के हेतु  ।

वंदे मातरम, वंदे मातरम ॥

दर्पण जैसे थे उन के मन
हृदय से करते थे देश कि चिंतन ।
अपने सुख को त्याग दिया था
बलिदानो से उनका जीवन भरा था ।

वंदे मातरम, वंदे मातरम ॥

उत्तम देश कि थी उनकी इच्छा
स्वतंत्र विचार सबकी सुरक्षा ।
शत्रु को भी नही दी कभी हानी
विश्व को दिया अहिंसा कि वाणी ।

वंदे मातरम, वंदे मातरम ॥

कोटी प्रणाम करु प्रशंसा
स्वतंत्रता के हर एक सैनिक को ।
आभार प्रगट मै करता हूँ
हर देश भक्त से प्रेम करता हूँ ।

वंदे मातरम, वंदे मातरम ॥