मॉ धरती का पुत्र हूँ
नमन किसान को करता ।
भोजन सरल मैं करता हूँ
शाकाहारी स्वयम को केह्ता हूँ ।
दूध दही भी पीता हूँ
गाय को मय्या केह्ता हूँ ।
स्वास्थ भी बढिया रेह्ता है
हर जीव पे मुझको करुणा है ।
है इतना सब कुछ खाने को
सो भय नही देता मैं पशुओ को ।
पशुए भय से कॉपे जब
मेरे हृदय मैं चिंता होती तब ।
ठीक नही है पशु का वध
विवश पशु न बोले एक शब्द ।
विविध सब्जिया विविध स्वाद
स्वास्थ सुधारे , किसान का प्रयास ।
जैसा चाहे वैसा उगाए
बीज बोए खेत बाग लगाए ।
सारे जीव का प्राण बचाए
हिंसा से ना भूक मिटाए ।
दया बढाए क्रोध घटाए
हर प्राणी से प्रेम बढाए ।
हरयाली से देश सजाए
मैं हूँ शाकाहरी, गर्व से गाए ।
नमन किसान को करता ।
भोजन सरल मैं करता हूँ
शाकाहारी स्वयम को केह्ता हूँ ।
दूध दही भी पीता हूँ
गाय को मय्या केह्ता हूँ ।
स्वास्थ भी बढिया रेह्ता है
हर जीव पे मुझको करुणा है ।
है इतना सब कुछ खाने को
सो भय नही देता मैं पशुओ को ।
पशुए भय से कॉपे जब
मेरे हृदय मैं चिंता होती तब ।
ठीक नही है पशु का वध
विवश पशु न बोले एक शब्द ।
विविध सब्जिया विविध स्वाद
स्वास्थ सुधारे , किसान का प्रयास ।
जैसा चाहे वैसा उगाए
बीज बोए खेत बाग लगाए ।
सारे जीव का प्राण बचाए
हिंसा से ना भूक मिटाए ।
दया बढाए क्रोध घटाए
हर प्राणी से प्रेम बढाए ।
हरयाली से देश सजाए
मैं हूँ शाकाहरी, गर्व से गाए ।